परिस्तिथि
- Kartikey Pandey
- Mar 24, 2017
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कभी कभी यह सोच के हसी आ जाती है
परिस्तिथि कैसे बदल जाती है
कभी जो आपका अपना था वो आज अंजना है
अपके लिये जो आपका दोस्त था वो आज भीड़ का हिसा है,
पर कही मै गलत तो नहीं
कही परिस्तिथि से ज्यादा
वयक्तित्व तो नहीं बदल ता
वक़्त तो वाही रहता है
कही समय तो नहीं बदलता
कही दिल का भाव,
समय का आभाव और
ज़िन्दगी का तनाव तो नहीं बदलता
लगता है मैं गलत था
परिस्तिथि नहीं इंसान बदलता है,
जीवन का मकसद बदलता है
इस लिए हर मोड़ पर नए अपने मिलते है
यही सच है क्या की लोग ही बदलते है..
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