ऐ ज़िदगी तू चली जा रही है
- Kartikey Pandey
- Jan 1, 2016
- 1 min read
ऐ ज़िदगी तू चली जा रही है
मगर न जाने ये दुनिया खा जा रही है
सांसों का शोर भी है
चीखो का सन्नाटा भी
हर रोज इंसानियत की परिभाषा लिखी जा रही है
ऐ ज़िदगी तू बस चली जा रही है
हथेली की तरह
ज़मीन मे खींची है ये लकीरें
बारूद का शोर है बस
और गुमनाम चीखो का सन्नाटा भी
हर रोज शांति की परिभाषा लिखी जा रही है
ऐ ज़िदगी तू बस चली जा रही है
कोई कुछ बोल नहीं सकता
फिर भी democracy है
कोई किसी को कोस नहीं सकता
फिर भी democracy है
हर रोज सहनशीलता की परिभाषा लिखी जा रही है
ऐ ज़िदगी तू बस चली जा रही है
न साफ पानी है न हवा
फिर भी हम सब के मुख पर चाँदी है
कोई है ख़ुशियाँ बाट रहा
तो कोई बाट कर ख़ुशियाँ दे रहा
हर रोज हँसीकी परिभाषा लिखी जा रही है
ऐ ज़िदगी तू चली जा रही है
मगर न जाने ये दुनिया खा जा रही है ।
Comments